Breaking : मूल्यों के सार्थवाह और सृजन” कृति की फुलवारी में चर्चा* *मूल्य हमें जीवन के विभिन्न चुनौतियों का सामना करने का साहस भी प्रदान करते हैं

*”मूल्यों के सार्थवाह और सृजन” कृति की फुलवारी में चर्चा*

*मूल्य हमें जीवन के विभिन्न चुनौतियों का सामना करने का साहस भी प्रदान करते हैं।*

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*”मूल्यों के सार्थवाह और सृजन” एक अद्वितीय पुस्तक है, जो प्रसिद्ध साहित्यकार श्री असीम शुक्ल द्वारा लिखी गई है। यह पुस्तक उन विभिन्न मानवीय मूल्यों की खोज करती है जो समाज और व्यक्तिगत जीवन दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।*

*श्री असीम शुक्ल ने इसमें उन नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर विशेष जोर दिया है जो हमारे जीवन को सच्चा अर्थ और दिशा प्रदान करते हैं। पुस्तक का मुख्य उद्देश्य यह है कि यह पाठकों को अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करे और उन्हें उनके आंतरिक मूल्यों को पहचानने में मदद करे। पुस्तक में विभिन्न कहानियाँ, उदाहरण और व्यक्तिगत अनुभव शामिल हैं, जो इसे और भी रोचक और ग्राह्य बनाते हैं। लेखनी सरल और स्पष्ट है, जिससे हर आयु वर्ग के पाठक इसे आसानी से समझ सकते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से, लेखक यह संदेश देना चाहते हैं कि हमारे मूल्य हमें न केवल सही दिशा में चलने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि वे हमें जीवन के विभिन्न चुनौतियों का सामना करने का साहस भी प्रदान करते हैं। “मूल्यों के सार्थवाह और सृजन” एक प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक पुस्तक है, जो निश्चित रूप से पाठकों को सोचने पर मजबूर करेगी और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगी।*

*कालिदास ने जो गहराई और मानवता का चित्रण किया है, उसमें शेक्सपियर उनसे पीछे दिखते हैं*
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*साहित्यकार असीम शुक्ल द्वारा किया गया यह कथन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय और पश्चिमी साहित्य के दो महानतम लेखकों, कालिदास और शेक्सपियर की तुलना पर प्रकाश डालता है। हर युग में अलग-अलग लेखकों ने समाज, संस्कृति और मूल्यों को अपने दृष्टिकोण से अभिव्यक्त किया है। कालिदास भारतीय साहित्य का एक स्तंभ हैं और उनके रचनाएँ जैसे ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’, ‘मेघदूतम्’ और ‘कुमारसम्भवम्’ गहन मानवता, प्रकृति प्रेम और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रस्तुत करती हैं। उनके लेखन में भारतीय संस्कार, प्रकृति और जीवन की सूक्ष्मतम भावनाओं का गहरा समावेश है। कालिदास अपने समय के महान कवि और नाटककार माने जाते हैं, जिन्होंने शाश्वत मूल्यों को संजोया।*

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*वहीं, शेक्सपियर पश्चिमी साहित्य के सबसे प्रमुख नाटककार और कवियों में से एक हैं। उनकी रचनाएँ जैसे ‘हेमलेट’, ‘मैकबेथ’, ‘ओथेलो’ और ‘रोमियो और जूलियट’ मानव जीवन की विविधता, सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों और जटिल भावनात्मक अनुभवों को प्रकट करती हैं। शेक्सपियर की भाषा, पात्र और नाटकीयता ने पश्चिमी साहित्य को गहराई से प्रभावित किया है। अतः दोनों लेखकों की तुलना करते समय यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि वे विभिन्न सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से आए थे। उनके लेखन में प्रस्तुत मूल्य और दृष्टिकोण उनके समय और समाज से गहराई से जुड़े होते हैं। शेक्सपियर भले ही पश्चिमी साहित्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, परंतु कालिदास के द्वारा भारतीय संस्कृति और जीवन के शाश्वत मूल्यों का चित्रण असीम महत्व रखता है। असीम शुक्ल का कहना है कि यदि हम शाश्वत मूल्यों की दृष्टि से देखें, तो कालिदास ने जो गहराई और मानवता का चित्रण किया है, उसमें शेक्सपियर उनसे पीछे दिखते हैं। यह एक दृष्टिकोण है जो उन दोनों लेखकों के साहित्यिक योगदान को एक नये प्रकाश में देखने का अवसर देता है।*

*टैगोर और नज़रुल, दोनों ही अपने-अपने स्थान पर महान साहित्यकार थे!*
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*असीम शुक्ल का विचार कि रविन्द्र नाथ टैगोर का गद्य साहित्य अप्रितम था लेकिन काव्य काज़ी नज़रुल इस्लाम से नीचे था, साहित्यिक दृष्टिकोण का एक विशेष पहलू है। शुक्ल ने इस्लाम को टैगोर से छोटा कवि साहित्यकार नहीं कहा, बल्कि उनके काव्य की तुलना में टैगोर का काव्य कमजोर बताया। यह उनकी अपनी राय है और स्वाभाविक रूप से अन्य साहित्यकारों जैसे अनिल रतूड़ी, सुशील उपाध्याय, और सुधारनी पांडेय से भिन्न हो सकती है, जिन्होंने गीतांजलि को टैगोर की अमर कृति माना।*

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*संस्कृत के विद्वान प्रोफेसर रामविनय सिंह का समर्थन भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि असीम शुक्ल की किताब, जिसमें 44 निबंध शामिल हैं, पूरे साहित्य को जागृत करती है। यह किताब विभिन्न दृष्टिकोणों और आलोचनाओं का संग्रहण करती है, जिससे पाठक को साहित्यिक दायरे में विस्तृत दृष्टिकोण प्राप्त होता है। वास्तव में, साहित्यिक आलोचना और दृष्टिकोण का क्षेत्र बहुत व्यापक और विविध होता है। हर लेखक और कवि का अपना अनूठा स्थान और योगदान होता है, जिसे समय और संदर्भ में समझा जाना चाहिए। टैगोर और नज़रुल, दोनों ही अपने-अपने स्थान पर महान साहित्यकार थे और उनकी कृतियों का साहित्यिक महत्व अमूल्य है।*

*राधा रतूड़ी की विनम्रता और साधारणता हर किसी को प्रभावित करती है*
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*फुलवारी देहरादून में एक अद्वितीय घर है, जहाँ साहित्य की खुशबू फैलती रहती है। राधा रतूड़ी और अनिल रतूड़ी, जो इस घर के मालिक हैं, ने इसे एक साहित्यिक स्थल में बदल दिया है। यहाँ हर माह के दूसरे शनिवार को साहित्यकारों, लेखकों और श्रोताओं के बीच होने वाली चर्चाएँ साहित्य की प्यास बुझाने का एक सुनहरा अवसर होती हैं। आज 14 वीं पुस्तक चर्चा “मूल्यों के सार्थवाह और सृजन” की थी। फुलवारी के सदस्य, जो करीब 35-40 होते हैं, इस अद्भुत चर्चा में भाग लेते हैं। कार्यक्रम ठीक पांच बजे शुरू होता है, लेकिन आगंतुकों का स्वागत करने के लिए राधा और अनिल रतूड़ी गेट पर पहले से ही खड़े रहते हैं। उनका स्वागत शादी के समारोह जैसा होता है, जो आगंतुकों के दिल को छू जाता है।*

*इस पुस्तक चर्चा में अनिल रतूड़ी लेखक से सवाल करने की भूमिका निभाते हैं, जिससे चर्चा और भी रोचक बन जाती है। दो घंटे की इस चर्चा में जब कुर्सियों की कमी हो जाती है, तो राधा रतूड़ी की सरलता देखने को मिलती है। वह कमरे के बाहर लगी कुर्सी में बैठ जाती हैं और हर एक व्यक्ति का ध्यान रखती हैं। कार्यक्रम के अंत में राधा रतूड़ी का धन्यवाद भाषण होता है, जो इस आयोजन का मधुर समापन करता है।*

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*चर्चा के बाद जलपान का प्रबंध होता है, जो इस साहित्यिक माहौल को और भी खुशनुमा बना देता है। राधा रतूड़ी की विनम्रता और साधारणता हर किसी को प्रभावित करती है। वह सरल स्वभाव से सबका दिल जीत लेती हैं, यह बात तो किसी को भी पता नहीं चलती कि वह राज्य की मुख्य सचिव हैं। इस प्रकार, फुलवारी एक ऐसा स्थल है, जहाँ साहित्य और सादगी का संगम होता है। यह न केवल साहित्यकारों के लिए, बल्कि सभी साहित्य प्रेमियों के लिए एक प्रेरणादायक स्थान है।*

*धोती पहनते हैं अनिल रतूड़ी!*
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*हमारे यहाँ पहले पुरुष यज्ञ, पूजा, या मांगलिक कार्य में धोती पहनते थे। समय के हिसाब से यह प्रचलन लुप्त हो रहा है। लेकिन अनिल रतूड़ी, जो अंग्रेजी साहित्य के विद्वान हैं और हर पुस्तक चर्चा में हमेशा धोती, कुर्ता और पहाड़ी टोपी पहनते हैं। अनिल रतूड़ी का यह पहनावा न केवल परंपरा को निभाता है, बल्कि उनके उच्च संस्कार और सांस्कृतिक मूल्यों को भी प्रदर्शित करता है। उनके द्वारा परंपरा और आधुनिकता का संगम बहुत ही प्रेरणादायक है और यह संदेश देता है कि हम अपनी संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करते हुए भी आधुनिकता के साथ कदमताल कर सकते हैं।*

*रतूड़ी जैसे लोग समाज को यह सिखाते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण या आधुनिक शिक्षा का मतलब परंपराओं को त्यागना नहीं है। परंपराओं के साथ जुड़ाव हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और हमारे सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्य हमें एक विशिष्ट पहचान देते हैं।*

*शीशपाल गुसाईं , फुलवारी में!*

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